Thursday, May 7, 2020

Poetry in the Times of COVID-19 IV

Friends,
Here is the yet another poem, both in its Hindi and English versions on the current theme: COVID-19. Hope it would interest some of you.

  

                 FIAT

  
This is a FIAT from the State.
Stay where you are.
Those in their homes, stay locked in.
There would be no shortages.
Groceries, vegetables, fruits, milk,
bakeries, medicines in plenty.
Keep busy. Use the Internet, TV
for news and entertainment 24x7.
Be creative. Invent new pastimes. Keep fit.
Go digital in money transactions.
You’ll miss nothing, except the humanoids
who perform all your menial jobs.
Bear with this for your own safety
and to serve Mother India.
Last time you lighted the lamps of solidarity
standing in your balconies
at a propitious confluence of stars.
This time we shall ask you to do something more.
To make a sacrifice, may be.
Wait for fresh instructions.


Now, for those who are out:
Stay locked out. Wherever you are.
On the roads. In makeshift camps. Wherever else.
Men, women, old, sick, children, infants, pregnant women, all. 
You will be fed at least once a day. Dal-chawal-roti.
You will have to stand in queue. No hardship for you.
You have done this again and again.
 There may not always be enough for all.
This also you know.
We cannot send you home.
Bear hunger, heat, loneliness, separation from your families,
 indignities from the police. You are no strangers to these too.
Don’t disobey the fiat.
The police may haul you up.
We need to protect the people.
So, stay where you are.
Like jawans at the borders.
Jai Hind.
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आदेश

राजसत्ता ने आदेश जारी किया है
जहां भी हो रुके रहो
घर के अंदर या बाहर

जो घरों में हैं बाहर निकलें
किसी चीज़की कमी नहीं होगी
आटा दाल चींनी सव्ज़ी फ़ल दूध दवाएं ब्रैड बिसकुट
सभी कुछ मिले गा  बेफ़िक्र रहें
मनोरंजन  और  ख़बरों के लिए
ईंटरनैट टीवी उपलब्ध हैं दिनरात
 मनोरंजन के नये नये साधन खोजें
 व्यस्त रहें फिट रहें
आपको सभ कुछ उप्लबध है
आपके अर्धमानव सेबक-सेविकाओं के सिवा
धीरज ररखें यह आपका कर्त्वय है
इस का पालन करें
इस  से पहले हम  ने आप से अपनी  बालकोनी में 
खड़े हो दिये जलाने को  कहा था
नक्षत्रों के शुभ संयोग के समय
अब हम आप से कोई कुरबानी मांग सकते हैं
राष्ट्र की ख़ातिर
हमारे अगले आदेश की प्रतीक्षा करें


और  जो घर से बाहर हैं बाहर ही रहें
जहां भी हैं सड़क पर बसेरों में कहीं भी
जवान बूढ़े बच्चे औरतें बीमार गरभवती औरतें सभी
हम तुम्हें खाना खिला देंगे
रोटी-दाल-चावल दिन में एक बार
तुम्हें लाईन में खड़े रहना होगा
हो सकता है कई बार तुम्हें खाना मिले
पर इस की तुम्हें आदत है
हम तुम्हें घर नहीं भेज सकते
भूख प्यास धूप परिवार जनों से दूरी अकेलापन पुलिस की ज़ोराज़ोरी
सहन करने होंगे अपनी जान बचाने के लिए
देश की ख़ातिर इसआदेश का पालन करना होगा
वरना पुलिस लाठी चला सकती है
जहां भी हो डटे रहो
सीमा पर जवानों की तरह तैनात
हमारे अगले आदेश तक
जयहिंद
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